Electoral Bonds Scheme: क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड, कब हुई थी शुरुआत; पढ़ें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई इस पर रोक.
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को अवैध करार देते हुए उस पर रोक लगा दी है साथ ही 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाये गए बॉन्ड को असवैधानिक करार दिया गया है.
इलेक्टोरल बांड के क्या है मायने
इलेक्टोरल बांड किसी गिफ्ट या वाउचर की तरह होता है सरकार हर साल चार बार जनवरी अप्रैल जुलाई और अक्टूबर में 10-10 दिन के लिए जारी करता है.मूल्य होता है,दो हज़ार दस हज़ार, दस लाख या एक करोड़ राजनीतिक पार्टियों को दो हज़ार से अधिक चंदा देने की इच्छुक कोई भी व्यक्ति या कोई भी कॉरपोरेट हाउस भारतीय स्टेट बैंक यानी एसबीआई की तय शाखाओं से यह बॉन्ड खरीद सकते हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड मिलने के 15 दिन के अंदर राजनीतिक पार्टियों इन्हें अपने खताओं में जमा करती हैं.बॉन्ड भुना बना रहे पार्टियों को यह नहीं बताना होता कि उनके पास यह बॉन्ड आया कहां से है दूसरी तरफ एसबीआई को भी यह बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता कि उसके यहां किसने कितने बॉन्ड खरीदे ये इलेक्टोरल बॉन्ड के हिसाब से तय किए गए नियम कानून है.
चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।
Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।”