अमेरिका ने CAA पर चिंता जाहिर कि : US, UN ने किया CAA का विरोध…
अमेरिकी वाइट हाउस और संयुक्त राष्ट्र ने दिन मंगलवार को इंडिया के विवादास्पद नागरिकता कानून को लेकर चिंता जाहिर की है. संयुक्त राष्ट्र ने इंडिया के इस कानून को मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण वाला बताया. बता दें कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 31 दिसंबर, 2014 से पहले इंडिया आए, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के बिना दस्तावेज वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए तेजी से नागरिकता देने के वास्ते नागरिकता (संशोधन) कानून-2019 (CAA) को सोमवार 11 मार्च को ऐलान कर लागू कर दिया. अब इसको लेकर दुनियाभर से प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं.
Human Rights Watch और Amnesty Internaltional का कहाँ हैं कि ये कानून इंडिया के मुसलमान के खिलाफ भेदभाव करता है. ह्यूमन राइट्स का कहना है कि CAA के तहत उन देशों के मुसलमान जैसे सिया मुस्लिम जैसे मुस्लिम अल्पसंख्यकों को लेकर कोई जगह इस कानून में नहीं दि गई है. ह्यूमन राइट्स ग्रुप के मुताबिक इंडिया में CAA के तहत उन पड़ोसी देशों को बाहर रखा गया है. जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक रूप में है. उदाहरण के लिए म्यांमार का नाम उन्होने लिया जहां रोहंगिया मुसलमान अल्पसंख्यक के रूप में रहते है.
संयुक्त राष्ट्र मनावधिकार महाचायुक्त के प्रवक्ता का कहना हैं हमने 2019 में ही कहा था, हम भारत के नागरिकता अधिनियम CAA को लेकर चिंतित है, क्योंकि यह मूल रूप से भेदभाव पूर्ण प्रकृति का है साथ ही यह भारत के अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार का मूल रूप से उल्लंघन करता है.उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र इस बात की पड़ताल कर रहा है. Kya CAA अंतरराष्ट्रीय मानवअधिकार कानून के अनुरूप हैं, या नहीं.
अमेरिका ने भी CAA अधिनियम कानून को लेकर अपनी चिंता जताई है, अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने रॉयटर्स को बताया कि हम 11 मार्च को इंडिया के नागरिकता अधिनियम कानून के सूचना से बहोत चिंतित है. हम इस बात को करीब से नजर रख रहे हैं कि ये अधिनियम कैसे लागू किया जाएगा. विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने ईमेल में कहा कि – धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान और सभी समुदाय के लिए कानून के तहत समान व्यवहार मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांत है.
भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद रॉ खन्ना ने भी कहा उन्होंने नागरिकता संशोधन यानी CAA का विरोध किया हैं. उन्होंने कहा – मैं उसका विरोध करता हूं, आवर्जन को लेकर मेरा दृष्टिकोण हमेशा ही बहुलवाद की ओर रही है. कार्यकर्ताओं और अधिकारों को वकालत करने वालों का कहना हैं कि यह कानून नागरिक परिस्तावित राष्ट्रीय रजिस्टर के साथ मिलकर भारत के 20 करोड़ मुसलमान के खिलाफ भेदभाव कर सकता है. ये पूरी दुनिया की सबसे बड़ी तीसरी मुस्लिम आबादी हैं. कुछ लोगों को डर है कि सरकार सीमावर्ती राज्य के बिना दस्तवाजो वाले मुसलमान की नागरिकता खत्म कर सकती है.